रो रहा विदर्भ है आज दर्द से,
इन कसी हुई जंजीरों से ।
वेदना है इसकी नस-नस में,
अपनी इस फुटी हुई तकदीर पे ॥
वक्त आ गया है सुनों आज,
विदर्भ की बेड़ियां खोलने की ।
उत्साह भरा है जन-जन मे,
जय विदर्भ राज्य बोलने की ॥
विदर्भ वासियों उठो आज,
प्यारे विदर्भ ने हमें पुकारा है ।
विदर्भ राज्य बनाने के लिये,
इसने हमे ललकारा है ॥
सोचने का वक्त अब निकल गया,
शिघ्राति-शीघ्र तुम आगे बढ़ो ।
अपना विदर्भ राज्य जल्द बन जाये,
इसके लिये तुम तन-मन से लड़ो ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-08-2000,monday,12:30pm,(378),
chandrapur,maharastra.
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