ईंषान ने विग्यान से, क्या-क्या न किया है ।
जीवन मे हमें ग्यान व, मान दिया है ॥
घर बैठे इंटरनेट से सारा,जानकारी मिल रहा ।
ईंषान अब ब्रह्माण्ड के, तारों को गिन रहा ॥
अब हर तरह की बिमारी का, ईलाज आज है ।
अध्यात्म पर विग्यान का,लगता है राज है ॥
आज हर एक क्षेत्र मे,विग्यान है भारी ।
मुठ्ठी में आज देखो,दुनिया है इसकी सारी ॥
सेटेलाइट,कम्प्यूटर,या हो एरोप्लेन ।
बिजली,फोन,रोबोट,विग्यान की ही देन ॥
अद्भुत,चमत्कारिक,बैग्यानिक शक्तियां ।
विग्यान से है हमको,बहुत कुछ है मिला ॥
सागर,धरा,अन्तरिक्ष,अब हमारी मुठ्ठी में ।
भूत,बर्तमान,भविष्य,सब हमारी चुटकी में ॥
विग्यान आज दिन-दिन,विकास कर रहा ।
पर प्राकृतिक संसाधनों का, नाश कर रहा ॥
विग्यान आज इतना,तेजी से बढ़ रहा ।
पर अध्यात्म की सिढ़ी से, ये है चढ़ रहा ॥
विग्यान से हम चाहे, कितना हो बढ़ रहे ।
पर कुदरत की आगे सदा ही, कमजोर रहेंगे ॥
ईंषान ने विग्यान से, क्या-क्या न किया है ।
जीवन मे हमें ग्यान व, मान दिया है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
27-09-2013,friday,4:45pm,(759).
pune,maharashtra.
No comments:
Post a Comment