जब मंहगाई की आग में, जल रहे हों हम,
तब खुशियों के गीत, कहां भाये
जब बेटियों का हो, रहा हो बलात्कार,
तो दर्द किसे, हम बतलायें ॥
जब रक्षक हो, जाए भक्षक,
तो फरियाद सुनाने, कहां जायें ।
चारों तरफ जब हों, भ्रष्टाचारी,
तो बिना रिश्वत के, काम न बन पाये ॥
जब गुरुओं को हो, पैसों का लालच,
तो शिष्यों का कल्याण, कैसे होगा ।
न्यायी यदि बेइमान, जब हो जाये,
तो इंसाफ भला, कैसे होगा ॥
जब चारों तरफ हो, लूट-पाट,
और अपहरण की, बढ़ती घटनाएं ।
घुट-घुट कर जीते, लोग यहां,
कोई कैसे रह पाए ॥
दहसत दिखती हर, आखों में,
लोग अपने भविष्य को, लेकर चिंतित हैं ।
निर्दोषों को फंसाना, आम बात,
अन्धे कानून से सब कोई, बिचलित हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-09-2013,saturday,2:30am,(760),
pune,maharashtra.
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