पत्थर दिल है ये सुनता नही,कैसे करुं मै बातें !
मेरा मन तो डरता बहुत, कैसे करुं मै मुलाकातें !!
पत्थर दिल..................
पहले भी उससे कई बार मिली मै,पर वो सुनता नही मेरा !
कह-कह कर मै हैरान हो गई, पर बस नही चलता है मेरा !!
पत्थर दिल................
आज का मौशम कितना है प्यारा,कैसा सुहाना लगे !
मेरे मन मे कभी रह-रह के,कुछ-कुछ होने लगे !!
पत्थर दिल.................
मै हूं इक ऐसी ही नदी,जिसे कहीं नही राह मिला !
मैने पाया है फ़ूल इक ऐसा, जो ना कभी भी खिला !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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१८/९/१९९४ ,रविवार रात,१० बजे,
चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)
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