आया बसन्त ॠतु का मौशम,
जहा प्रकृति भी अपनी जवानी पर है ।
धरती देखो बन गई है दुल्हन,
कितनी लगती दिवानी सी है ॥
फ़ूली सरसों के पिले फ़ूल,
गेहूं की लहलहाती हुई बाली ।
अरहर मे भी निकल आये हैं फ़ूल,
किसान खुश हो रहे जैसे माली ॥
फागुन का महिना, चलती बयार,
मदमस्त बहार ही बहार आया ।
बौरा हैं गये ,रसराज आम ,
जैसे आशिक पे, निखार हो आया ॥
दिवाना हो गया है, ये सारा जहां,
ये देखके, प्यार भरा मौशम ।
प्रेमी जोडे़, हो रहे प्रसन्न,
पर
दुखी, हो रहे
हैं बिरहन ॥
रंग -बिरंगे , फ़ूलों से,
प्रकृति, खेल रही है होली ।
नाच रहे हैं, मयुरा देखो,
कोयल कि,, सुन - सुन के बोली ॥
काम देव बन गये, ॠतु राज बसन्त,
जो प्यार की ,आग लगा रहे हैं ।
चम्पा रानी के, फ़ूलों की ओर,
देखो गुलाब राज जी, डाल बढ़ा रहे हैं ॥
आया बसन्त ॠतु, का मौशम,
जहां प्रकृति, भी अपनी जवानी पर है ।
धरती देखो, बन गई है दुल्हन,
कितनी, लगती दिवानी सी है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -६-३-२०१३,वुद्धवार
रात्रि १:००बजे,पुणॆ महाराष्ट्र
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