Monday, 19 February 2024

करूं कैसे मै बया हर अदा आपकी

करूं कैसे मै बया, हर अदा आपकी,
आपका तो, कोई जवाब नही
आपको जो भी देखे ,वो हो जाये फ़िदा,
उन्हे लगता है, कहीं कोई ये ख्वाब तो नही
करूं कैसे मै बया.....

दौड़ पड़ते हैं लोग, पलक झुकते नही,
आपकी इक झलक, को पाने के लिये
बातें करने को, हर सख्श चाहता आपसे,
कोई कैसे - कैसे, सब बहाने लिये
करूं कैसे मै बया........

प्रकृति की तरह,आप है खुबसुरत,
आपका कोई, उपमा है नही
आपकी हर अदा से, टपकता है नूर,
जैसे आप हो मोम की ,प्रतिमा कोई
करुं कैसे मै बया..........


रंग बिजली की चमक, लिये आप हैं,
आंखें कजरारे, जैसे कोई, शायरी कर रहे
बातें करती हुई, आपकी ये चुडीयां,
जैसे किसी के गजल, को हो पढ़ रहे
करूं कैसे मै बया...........

आपके केश हैं, जैसे काली घटा,
जिसमे कितने ही, आशिक समा जाते हैं
रिम-झिम सावन की, पड़ती ऐसी फ़ुहार,
जो माथे पे पसीना, बन जाते हैं
करूं कैसे मै बया.............

हरियाली को लिये , हुये, ये धरा,
जो आपका ,अपना ,परिधान हो
फ़ुली सरसो के, ये लह-लहाते, खेत तो,
जैसे आपकी ,अपनी, मिठी मुस्कान हो
करूं कैसे मै बया..............

उमड़ - घुमड़ ,बादलों की तरह,
जैसे आपका, अपना सीना हो
सुर्योदय तो लगे, आप को,
आप नई - नवेली दुल्हनिया हो
करूं कैसे मै बया.........

पूनम का चांद, है मुखड़ा आपका,
आपके होठ, सुबह और सन्ध्या है
गिरते आसू, को हमने दिया आपके,
कोई खारे, समुद्र, कि संग्या है
करूं कैसे मै बया............

रुन -झुन करते हुये ,पायल पावों के,
झमझमाती, गेहूं की हो, बालियां
शाम समय, सुरज की, लालिमा,
जैसे आप की, होठों, की हो लालियां
करूं कैसे मै बया......

कानो के झुमके, तो आप के,
जैसे धान की, लटकती बाली हो
ये दिल तो, आपका, है ऐसे,
जैसे समुद्र, की, कोई गहराई हो
करूं कैसे मै बया...........

मदमस्त आम, की ये, अमराइयां,
जैसे आपका, हो अपना, यौवन
ग्रीष्म ॠतु, का पड़ता, हुआ तपन,
जैसे आप हो, कोई बिरहन
करूं कैसे मै बया.........

प्रकृति की, सुन्दर खुशहाली, आप हैं,
जिसमे रंग-बिरंगा, जीवन है
ये बहती हुई हवा ऐसी,
जो आपकी ,अपनी, धड़कन है
करूं कैसे मै बया..........

तारे टिम-टिम ,करते, आकाश के,
जो कि श्रृंगार, आपका, है अपना
पेड़ों की कतारों, की तरह ,आशिक,
जो देख रहे, हैं कोई ,सपना
करूं कैसे मै बया...........

कर दिया मै, बया हर, अदा आपकी,
आप इतने पर, भी मेरी, हो जाइये
मै दिल मे, बसाये, रहूं आपको,
आप इंकार, कर के तो, मत जाइये

करूं कैसे मै, बया हर अदा, आपकी,
आपका ,तो कोई, जवाब नही
आप को, जो भी देखे, वो हो जाये फिदा,
उन्हे लगता है, कहीं कोई, ख्वाब तो नही
करूं कैसे मै बया........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक---२०१३ रविवार, रात्रि-.१५ बजे,
पुणे , महा.






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