जीवों को मत सतावो, उनके भी जान हैं ।
अपने ही जैसे देखो,उनके भी प्राण हैं ॥
किसी का भी जान लेना, ये तो महापाप है ।
कोई और नही हैं आप, ईंषान आप हैं ॥
हर पाप की सजा,सबको ,मिलती
है यहां ।
दुःख पाते ऐसे लोग, जैसे उनको ना हो पता ॥
हर जीव मे है ईश्वर,किसी को न मारिये ।
सब को करें प्यार,उन्हे कभी ना सताइये
॥
भगवान होंगे खुश,हम बलि को चढ़ाते हैं ।
उनके ही नाम से हम ,अपनी छुधा मिटाते हैं ॥
जितने भी जीव हैं, उन्हे ईश्वर ने बनाया ।
उन्हे कीट,पक्षी,पशु
तो, हमे मानव है बनाया ॥
ईंषान हम बने हैं तो ईंषानियत रहे ।
हम ऐसा काम क्यों करें,जब हमे दानव सब कहें ॥
जीवों को मत सतावो......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन तिथि-०९-०५-२०१३,बृहस्पतिवार
दोपहर-२.४० बजे,पुणे, महाराष्ट्र
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