Monday, 19 February 2024

तेरे रूप से चढ़ा, हमे भंग का रंग

फागुन के महिना मे ,
ना इतरावो गोरी ।
हम फाग खेलन को आये हैं ।
करो ना हमसे जोरा - जोरी,
हम प्यार के दिवाने आये हैं ॥
फागुन के .......

तेरे रूप से चढ़ा, हमे भंग का रंग,
आंखों मे तू ही, नजर हमे आती है ।
चले ठंडी बयार ,उड़े अबीर - गुलाल,
होली खेलने मे, काहे शर्माती है ॥
फागुन के........

फ़ुली सरसो की बहार - भवंरों की देखो कतार,
सब रस पिने को , चाहते है गोरी ।
हम तो कर देंगे गुलाबी गाल- हमसे ना करो सवाल,
हम तो प्यार की, बांधने आये हैं डोरी ॥
फागुन के .........

नयनों से ना चलावो तीर, हम हो रहे अधीर,
हम तो रंग, को लगा के ही जायेंगे ।
भागो ना हमसे दूर, हमे करो ना मजबूर,
हम तो जी भर के , फाग मनायेंगे ॥
फागुन के महिना मे.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक- --२०१३ वार- बुद्धवार,
समय रात्रि २ बजे, पुणे महाराश्ट्र






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