होता बहुत महान है, देखो ये आदमी ।
जीवन भर संघर्ष तो,करता है आदमी ॥
जन्म से लेकर मृत्यु तक,लड़ता है आदमी ।
सपने अधुरे छोड़कर,मरता है आदमी ॥
रिश्तों की डोर को तो,निभाता है आदमी ।
कभी स्वार्थ के लिये तो, भुलाता है आदमी ॥
करता विकास बहुत है, देखो ये आदमी ।
पर कुदरत का नाश भी, करता है आदमी ॥
अपना-पराया खुब ये, करता है आदमी ।
कभी उपकार के लिये भी, मरता है आदमी ॥
कभी पाप कर्म करके, बढ़ता है आदमी ।
कभी सत्य के लिये भी, लड़ता है आदमी ॥
कभी सम्मान के लिये तो, मरता है आदमी ।
कभी अपमान भी तो देखो, सहता है आदमी ॥
कभी ईन्सानियत का पाठ, पढ़ाता है आदमी ।
कभी दानवों सा काम भी, कर जाता आदमी ॥
कभी मुश्किलों को आसान, बनाता है आदमी ।
कभी महलों से झोपड़ी मे भी, आता है आदमी ॥
अनहोनी को भी होनी, करता है आदमी ।
पर वक्त के अनुसार ही, ढलता है आदमी ॥
होता बहुत महान है, देखो ये आदमी ।
जीवन भर संघर्ष तो,करता है आदमी ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
09-07-2013,tuesday,11.50am,
pune,maharashtra.
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