कभी वो भी जमाना रहता था,
जब सभी त्योहार खुशी से मनाये जाते थे ।
आपस मे दुश्मनी हो लेकिन,
पर दिल से गले लगाये जाते थे ॥
पर आज त्योहार एक औपचारिकता से हो गए,
जो दिल से नही मनाये जाते ।
तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान,
पहले जैसे नही बनाये जाते ॥
इन सब के पिछे शायद एक ही कारण है,
इस आग उगलती मंहगाई का ।
और लोगों के पास समय भी नही है,
जो आदर कर सकें पहुनाई का ॥
गावों मे ये सब रीति- रिवाज,
अभी भी दखने को मिल जाते ।
पर भाग रही शहरी जींदगी मे,
ये कहीं-कहीं हैं नजर आते ॥
शायद वो दिन दूर नही,
जब हम अपने रीति-रिवाज को भुलते जायेंगे ।
आने वाले त्योहारों को भी ,
बे-मन से उसे मनायेंगे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-३१-३-२०१३,रविवार,
शाम-५.४५ बजे,पुणे ,महा.
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