इन पत्थरों के बीच, कहां से हम आ गये ।
उनको सुनाये हाल, तो वो मुस्करा गये ॥
इन पत्थरों के बीच.....
हम टूट से गये हैं,उनके तो सामने ।
रोना हमारा देखके,हमें और रुला गये ॥
इन पत्थरों के बीच.....
हमें चाहिये था प्यार ,मगर दिल जला गये ।
हमने तो मांगे फूल,मगर कांटे चुभा गये ॥
इन पत्थरों के बीच.....
हमें लूट ले न कोई,गये थे पनाह में ।
वे तो देखते ही मेरी,ईज्जत लुटा गए ॥
इन पत्थरों के बीच.....
जब जाल में फंसे थे वे,तब हमने छुड़ाये थे ।
उसी जाल में वे हमको,देखो फंसा गए ॥
इन पत्थरों के बीच.....
हमें मोम से लगे थे,आए तो पत्थर हैं ।
इन्हें प्यार से जब छुए,तो ये हमे पत्थर बना गए ॥
इन पत्थरों के बीच, कहां से हम आ गये ।
उनको सुनाये हाल, तो वो मुस्करा गये ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-02-2001,monday,7:00pm,(459),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu.
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