इस हाड़-मांस की काया पर,
करना कभी गुमान नहीं ।
आये हो तो जाना ही पड़ेगा,
करना कभी अभिमान नही ॥
गोरा या हो काला तन,
सभी को यहां से जाना है ।
किसी-किसी की चिता जलेगी,
कोई मिट्टी में मिल जाना है ॥
आज हमारा स्वस्थ शरीर है,
कल यह बीमार हो सकता है ।
आज बने हम ग्यानवान,
पर कल यह मन पागल हो सकता है ॥
धनवान आज कहलाते हैं हम,
कल कंगाल पति बन सकते हैं ।
उड़ रहे आसमान मे आज हम,
कल धरती पे गिर सकते हैं ॥
कभी अभिमान नही होना चहिये,
अपने इस नश्वर शरीर पर ।
परोपकार हो सदा दिल में,
और जावो तो दिल जीत कर ॥
इस हाड़-मांस की काया पर,
करना कभी गुमान नहीं ।
आये हो तो जाना ही पड़ेगा,
करना कभी अभिमान नही ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
1:10pm,saturday,17-02-2001,(457),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu
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