हमको तो लूट डाला,रंगीन जमाने ने ।
लोगों ने पी है डाला,हमको पैमाने मे ॥
हमको तो लूट डाला....
जब मैं कली थी पहले,चूमा था लोगोम ने ।
जब फूल मैं बनी,तो लिया बाहों में लोगों ने ॥
हमको तो लूट डाला....
जब मैं बहार में थी,वे पलकें बिछाते थे ।
मुझे पाने की आश में, वे नजरें लगाते थे ॥
हमको तो लूट डाला....
मेरे हुश्न को तो सबने,मयखाना बना दिया ।
हमको बना के जाम,लोगों ने खूब पिया ॥
हमको तो लूट डाला....
आया नशा जब उनको,वे बेहाल चल दिये ।
मैं देखती ही रह गई,हमको मशल दिये ॥
हमको तो लूट डाला....
अब उम्र ढल गई,तो वे पहचानते नही ।
मुंह फेर लेते ऐसे,जैसे जानते नहीं ॥
हमको तो लूट डाला,रंगीन जमाने ने ।
लोगों ने पी है डाला,हमको पैमाने मे ॥
हमको तो लूट डाला....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-02-2001,sunday,8:00pm,(448),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu.
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