रतियां बिताऊं कैसे,तुम्हें तो भुलाऊं कैसे...
आ जा पिया मोरे,दूर परदेश से...२
रतियां बिताऊं कैसे....
नींद न आवे मोरे, अंखियन मे सजना...
तड़पे है दिल मोरा,बिनु जल मीन ऐसे ....२
रतियां बिताऊं कैसे....
कहीं से कोई आहट सुनके,धक-धक करे जिया...
धड़कन तो दिल की, सुनाऊं कैसे....२
रतियां बिताऊं कैसे....
पंख होते मोरे,हाथ और पांव तो..
उड़के चली आती,पखियन के जैसे....२
रतियां बिताऊं कैसे....
तुम्हरे बिरह मे मैं,हो गई दिवानी...
दिल की तो बात हम,बताऊं कैसे....२
रतियां बिताऊं कैसे,तुम्हें तो भुलाऊं कैसे...
आ जा पिया मोरे,दूर परदेश से...२
रतियां बिताऊं कैसे....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
10-02-2001,saturday,8:20pm,(447),
thoppur,tamilnadu.
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