Monday, 19 February 2024

अब की बसन्त मोहे बड़ा सताये

अबकी बसन्त मोहे बड़ा सताये,
क्या बतलाऊं गोरी ।
रहि-रहि के तेरी याद है आये,
मिलन की आश मे हम हैं तोरी ॥
अबकी बसन्त.....

फागुन की चलती  बयार प्रिये,
मेरे तन मे आग लगाये ।
दिन तो जैसे भी कट जाता,
पर बैरिनि रात सताये ॥
अबकी बसन्त........

मदमस्त आम की अमराई,
सुखी घास हमे लागे ।
हरे -भरे ये बाग-बगीचे,
जैसे मरु-भूमि हमे लागे ॥
अबकी बसन्त...

फ़ुली सरसो के ये पिले फूल,
मेरे मन को ताप जस लग रहे है ।
रंग -बिरंगे देखो ये फूल,
मानो ये हम पर हस रहे हैं ॥
अबकी बसन्त.......

कल-कल करते हुए ये झरने,
रह-रह के घाव हमे लागे ।
तरह-तरह के ये प्रेमी जोड़े,
जैसे जवाब ये हमसे मांगे ॥

अबकी बसन्त मोहे बड़ा सताये,
क्या बतलाऊं गोरी ।
रहि-रहि के तेरी याद है आये,
मिलन की आश मे हम हैं तोरी ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१०--२०१३, रविवार,शाम ४ बजे,
पुणे, महा.


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