इस कमर तोड़ मंहगाई से,
आम आदमी का जीना मुश्किल है ।
घुट-घुट के जीते लोग यहां,
और सबकी आत्मा दुखती है ॥
दिशाहीन सरकार के कारण,
मंहगाई का बोझ चढ़ा जाता ।
अब साल -छह महीने के बात नही,
हर माह टैक्स है बढ़ा जाता ॥
बच्चों के उचित परवरिश व,
उनके शिक्षा का व्यवस्था कैसे होगा
।
दो जून की रोटी नसीब नही,
अपने बेटियों का ब्याह कैसे होगा
॥
हर सख्श के माथे पर,
चिन्ता की खिची लकीरें हैं ।
दो गज शायद कफ़न भी न मिले,
ऐसी मन मे खिंची तश्वीरें हैं ॥
आज की युवा पिढ़ी के,
आंखों मे झलकता दहशत है ।
बेदर्द जमाने को देख-देख,
ये अपने भविष्य को लेकर आशंकित है
॥
वोट के लिये बन रहे आरक्षण से,
इन्हे इनके ईनाम नही मिलते ।
ये भारत के फूल हैं ऐसे,
जो की गलत नितियों से नही खिलते ॥
इस कमर तोड़ मंहगाई से,
आम आदमी का जीना मुश्किल है ।
घुट-घुट कर जीते लोग यहां,
और सबकी आत्मा दुखती है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-११-३-२०१३, सोमवार,
रात्रि-९.२० बजे, पुणे,महा.
No comments:
Post a Comment