उन्हे शर्म नही है ज़माने से,
इनसे ये जमाना शर्माता है ।
इनके बेहयायी पूर्ण अंग प्रदर्शन से,
हमारे भारत का दिल घबराता है ॥
पश्चिमी सभ्यता की ये हुई दिवानी,
ये अंग्रेजों जैसा अंग -प्रदर्शन करती हैं ।
कभी-कभी बाइक पे बैठने का ढंग,
या कभी नैन- मटक्का करती हैं ॥
पढ़ाई का बहाना करते-करते,
ये लव की पढ़ाई पढ़ती हैं ।
फ़िल्मी नशा मे मदहोश हुई,
ये सपनो की चढ़ाई चढ़ती हैं ॥
ब्वाय-फ़्रेन्ड की परिभाषा,
ये बड़े गर्व से करती हैं ।
वेलेन्टाइन डे या अन्य दिनो मे,
प्रेम से गले ये मिलती हैं ॥
सपनो मे दिखता माइकल जैक्सन,
डिस्को-डी-जी पे कदम लहराती हैं ।
मन्दिरों मे जाना इन्हे ठीक नही,
पर क्लबों मे हाजिरी लगाती हैं ॥
अश्लील दृष्यों को देख-देख कर,
मेरी लेखनी भी शरमा रही है ।
भावी फ़ैशन के दुश्प्रभाव से,
ये भी तो सकुचा रही है ॥
रंगीन जीन्दगी ये चार दिनो का है,
इसपे ना इतरावो ।
कल का भविष्य तुम्हे पुकार रहा,
अब भी समय है संभल जावो ॥
उन्हे शर्म नही है जमाने से,
इनसे ये जमाना शर्माता है ।
इनके बेहयायी पूर्ण अंग प्रदर्शन से,
हमारे भारत का दिल घबराता है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१२-३-२०१३,मंगलवार,
प्रातः ५ बजे,पुणे ,महा.
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