जींदगी तेरा इक सपना,
कोई भी तो अपना नहीं है ।
चाहे लाख जतन तू कर ले,
फिर भी तुझको यहां रहना नहीं है ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
जो भी है वक्त अब तक ये गुजरा,
और आगे का वक्त है आने वाला ।
चाहे दुःख या फिर तेरा सुख हो,
सब है सपना सुनो मेरे लाला ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
जब माँ के गर्भ मे था तूं आया,
फिर गर्भ से तु इस जगत मे आया ।
जब इस धरा पे तू रखा कदम है,
तब से तुझको है घेरी ये माया ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
कौन अपना है,कौन पराया,
तू इसी उलझन मे दिन-रात रहता ।
कौड़ी-कौड़ी तू जोड़े है भाई,
कभी करता है पाप की कमाई ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
जब तेरे पास मे थी अपनी दौलत,
वो भी अपने थे जो थे पराये ।
आज तेरा खजाना है खाली,
तेरे अपने भी मुंह हैं फिराये ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
तु तन को कितना सजाया-संवारा,
जब कि ये बस मिट्टी की काया ।
अब तो जाने की कर ले तैयारी,
भइया अब तु जहां से था आया ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
काठ के जैसे जलेगा तेरा तन ये,
अब ये रोयेंगे और तू हसेगा ।
क्या ले गया साथ मे तू अपने,
तेरा सब कुछ यहां ही रहेगा ॥
जींदगी तेरा इक सपना...
जींदगी तेरा इक सपना,
कोई भी तो अपना नहीं है ।
चाहे लाख जतन तू कर ले,
फिर भी तुझको यहां रहना नहीं है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
17-12-2000,11:45pm,sunday,(428),
chandrapur,maharashtra.
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