Monday, 19 February 2024

जींदगी तेरा इक सपना

जींदगी तेरा इक सपना,
कोई भी तो अपना नहीं है
चाहे लाख जतन तू कर ले,
फिर भी तुझको यहां रहना नहीं है
जींदगी तेरा इक सपना...

जो भी है वक्त अब तक ये गुजरा,
और आगे का वक्त है आने वाला
चाहे दुःख या फिर तेरा सुख हो,
सब है सपना सुनो मेरे लाला
जींदगी तेरा इक सपना...

जब माँ के गर्भ मे था तूं आया,
फिर गर्भ से तु इस जगत मे आया
जब इस धरा पे तू रखा कदम है,
तब से तुझको है घेरी ये माया
जींदगी तेरा इक सपना...

कौन अपना है,कौन पराया,
तू इसी उलझन मे दिन-रात रहता
कौड़ी-कौड़ी तू जोड़े है भाई,
कभी करता है पाप की कमाई
जींदगी तेरा इक सपना...

जब तेरे पास मे थी अपनी दौलत,
वो भी अपने थे जो थे पराये
आज तेरा खजाना है खाली,
तेरे अपने भी मुंह हैं फिराये
जींदगी तेरा इक सपना...

तु तन को कितना सजाया-संवारा,
जब कि ये बस मिट्टी की काया
अब तो जाने की कर ले तैयारी,
भइया अब तु जहां से था आया
जींदगी तेरा इक सपना...

काठ के जैसे जलेगा तेरा तन ये,
अब ये रोयेंगे और तू हसेगा
क्या ले गया साथ मे तू अपने,
तेरा सब कुछ यहां ही रहेगा
जींदगी तेरा इक सपना...

जींदगी तेरा इक सपना,
कोई भी तो अपना नहीं है
चाहे लाख जतन तू कर ले,
फिर भी तुझको यहां रहना नहीं है

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
17-12-2000,11:45pm,sunday,(428),
chandrapur,maharashtra.


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