ये ईश्क है कोई नशा,
जो बिन पीये चढ़ जाता है ।
इसे जितना भुलाने की कोशिश करो,
ये और भी बढ़ता जाता है ॥
ये जाम तो ईश्क का देखो,
आखों से पिया जो जाता है ।
इक बार नशा जब चढ़ जाये,
फिर और उतर नहीं पाता है ॥
अब तक ना बनी है दवा कोई,
जिन्हें ईश्क का रोग लग जाता है ।
जैसे मीन और नीर का रिश्ता,
वैसे और भी ये तड़पाता है ॥
दो अंजाने दिल मिल जाते,
जब ईश्क जो प्यार बन जाता है ।
दो दिल दिवाने हो जाते,
और जीवन में बहार आ जाता है ॥
ये ईश्क है कोई नशा,
जो बिन पीये चढ़ जाता है ।
इसे जितना भुलाने की कोशिश करो,
ये और भी बढ़ता जाता है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
27-05-2001,sunday,11:00pm,(492),
thoppur,dharmapuri,tamil
nadu.
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