हे दीन बंधु कृपानिधान,तनी हमरी ओर निहारिये ।
हम दीन-हीन गरीब के,बिगड़ी को प्रभु जी संवारिये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
तुम हो अनादि और अनंत,घट-घट मे तेरा वास है ।
तुम आदि भी तुम ही हो अंत,अपनी कृपा बरसाइये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
तुम ही हो ब्रह्मा,विष्णू तुम,शिव तुम तो प्राण अधारे हो ।
श्री राम तुम,श्री कृष्ण तुम,हमे अपना दरश तो दिखाइये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
रचना करते हो सृष्टि का,पालक भी संहारक भी तुम ।
अपना बना लो प्रभु हमें,हे नाथ मोहे ना बिसराइये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
अग्यान पर तुम ग्यान हो,अंधेरे पे तुम तो उजाले हो ।
अंधकार में हम पड़े यहां,प्रभु अपनी ज्योति फैलाइये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
तुम बेसहारों के सहारे हो,तुम तो सभी का किनारा हो ।
मेरी नाव है मझधार में,हे नाथ हमको ऊबारिये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
तुम तो जगत के हो पिता,हम बाल तेरे लाल हैं ।
हम हैं विपद में आज प्रभु,हमको विपद से निकालिये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
हे दीन बंधु कृपानिधान,तनी हमरी ओर निहारिये ।
हम दीन-हीन गरीब के,बिगड़ी को प्रभु जी संवारिये ॥
हे दीन बंधु कृपानिधान....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
16-11-2000,thursday,7:30pm,(411),
in
sikandrabad-varanasi train,jabalpur,m.p.
No comments:
Post a Comment