मै हूं अपने आंगन की ,
नन्ही सी गुड़िया ।
मै हूं दिखती छोटी,
पर मै जादू की पुड़िया ॥
मै अपनी मम्मी पापा की,
प्यारी-प्यारी सी बेटी ।
पापा की मै बहुत दुलारी,
मम्मी हमे प्यार बहुत देती ॥
भैय्या के बाहों मे मैं,
झूला -झूला करती ।
नटखटी अदायें हैं मेरी,
और बहुत ही बोला करती ॥
दादी की मै छड़ी पकड़ के,
उनको रोज घुमाती।
बाबा का हाथ पकड़ कर ,
मै उनके संग जाती ॥
मै अपनी ओतली-तोतली भाषा मे ,
कविता खुब सुनाती ।
सोती हूं जब मुझको मम्मी,
लोरी खुब सुनाती ॥
मै हूं अपने आंगन की,
नन्ही सी गुड़िया ।
मै हूं दिखती छोटी,
पर मै जादू की पुड़िया ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
२५-४-२०१३,बृहस्पतिवार,दोपहर,१.२५ बजे,
पुणे ,महा.
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