Monday, 19 February 2024

मै हूं अपने आंगन की

मै हूं अपने आंगन की ,
नन्ही सी गुड़िया
मै हूं दिखती छोटी,
पर मै जादू की पुड़िया

मै अपनी मम्मी पापा की,
प्यारी-प्यारी सी बेटी
पापा की मै बहुत दुलारी,
मम्मी हमे प्यार बहुत देती

भैय्या के बाहों मे मैं,
झूला -झूला करती
नटखटी अदायें हैं मेरी,
और बहुत ही बोला करती

दादी की मै छड़ी पकड़ के,
उनको रोज घुमाती।
बाबा का हाथ पकड़ कर ,
मै उनके संग जाती

मै अपनी ओतली-तोतली भाषा मे ,
कविता खुब सुनाती
सोती हूं जब मुझको मम्मी,
लोरी खुब सुनाती

मै हूं अपने आंगन की,
नन्ही सी गुड़िया
मै हूं दिखती छोटी,
पर मै जादू की पुड़िया

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
२५--२०१३,बृहस्पतिवार,दोपहर,.२५ बजे,

पुणे ,महा

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