जब वक्त बुरा
हो अपना तो,
अपने भी पराए
हो जाते ।
जो सोचे वो
होता है नही,
दुश्मन भी
सवाए हो जाते ॥
मित्र - मण्डली
हो जाते हैं दूर,
सब पिछा उनसे
छुड़ा लेते ।
आया बिपत्ति
है जान के वे,
निगाहें अपनी
फ़िरा लेते ॥
सुख के दिन
मे सब के सब,
वे अपना-पन
दिखलाते हैं ।
पर दुख के
बादल छाते ही,
वे अन्जान
से सब बन जाते हैं ॥
सम्मान जहां
पाते थे आप,
अपमान वहां
सहना पड़ता ।
दोष नही
दें उन सब को,
कर्म की
गति को जान रहना पड़ता ॥
पर आये दुख
तो घबराना नही,
बस सहन-शिलता
रखा जाये ।
ईश्वर का ध्यान
करें दिल मे,
अपनो को भी
परखा जाये ॥
दुख आता है
सुख देने के लिये,
इस लिये कभी
निराश नही होना ।
बस शान्ति से
अपना काम करें,
सुख का आश नही
खोना ॥
परिवार मे
सब कोई मिल-जुल के ,
दुख के समय
को काटना है ।
दिन आएंगे
अच्छे अपने,
फ़िर खुश होके
हमे इसे बाटना है ॥
जब वक्त बुरा
हो अपना तो,
अपने भी पराए
हो जाते ।
जो सोचे वो होता
है नही,
दुश्मन भी सवाए
हो जाते ॥
मोहन श्रीवास्तव
(कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१३-३-२०१३,बुद्ध्वार,रात्रि
९ बजे,
पुणे ,महा.
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