बज गया बिगुल है चुनावी महासमर का,
जिसमे सब शब्दों के तीर चलाएंगे !
वोटों का हमसे भीख मांगकर,
इस महा कुंभ मे नहाएंगे !!
पांच साल को गए थे ये,
पर एक साल ही रह पाए !
मति विपरीत हो गई थी इनकी,
जो की जनता की जेल मे फ़िर आए !!
इस भीड़ तन्त्र के प्यारे मतदातावों,
कई लुभावने उनके नारे होंगे !
पानी,बिजली व राशन -तेल,
ए सब कुछ सस्ते होंगे !!
सड़कें जहा नही है भाई,
हम शिघ्राति-शीघ्र बनवाएंगे !
सरकार बन गई तो मेरी,
सब की तकलीफ़ें मिटाएंगे !!
जीत गए तो ,फ़िर पहचानेंगे नही,
हारे तो उदास हो जाएंगे !
यह जीत-हार का सारा खेल,
हम सब के सीने पर खेले जाएंगे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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११/५/१९९९,मंगलवार,रात ९.३५ बजे,
चन्द्रपुर महा.
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