कब से तुम्हारी राह देख रहे,
नये साल मेरे प्यारे ।
बीते साल का दिन गिन-गिन कर,
ये नयना थक गये हमारे ॥
बड़े दिनों से अभिलाषा थी,
तुम्हारे संग में खुशियां मनाने को ।
मन मे खिलती आशा थी,
अपना तुम्हें बनाने को ॥
कितने दिन बीते और,
कितनी बिती रातें ।
कितनी आखें बूढ़ी हो गई,
तेरे दरश के नाते ॥
अब शुभ घड़ी ने आखें खोली,
और पक्षियों का गुंजार हुआ ।
सुरज की झिलमिल किरणों से,
धरा पे कैसा उजियार हुआ ॥
दिल ये गुलाब सा खिल सा गया,
ऐ नये साल तेरे आने से ।
उत्साह भरा है जन-जन में,
अब इस नये साल के जमाने मे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-12-2000,monday,6:40pm,(432),rewised
on 15-10-2013,
chandrapur,maharashtra.
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