Monday, 19 February 2024

नये साल हमारे प्यारे

कब से तुम्हारी राह देख रहे,
नये साल मेरे प्यारे
बीते साल का दिन गिन-गिन कर,
ये नयना थक गये हमारे

बड़े दिनों से अभिलाषा थी,
तुम्हारे संग में खुशियां मनाने को
मन मे खिलती आशा थी,
अपना तुम्हें बनाने को

कितने दिन बीते और,
कितनी बिती रातें
कितनी आखें बूढ़ी हो गई,
तेरे दरश के नाते

अब शुभ घड़ी ने आखें खोली,
और पक्षियों का गुंजार हुआ
सुरज की झिलमिल किरणों से,
धरा पे कैसा उजियार हुआ

दिल ये गुलाब सा खिल सा गया,
नये साल तेरे आने से
उत्साह भरा है जन-जन में,
अब इस नये साल के जमाने मे

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-12-2000,monday,6:40pm,(432),rewised on 15-10-2013,

chandrapur,maharashtra.

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