थोड़ा जो हंस हम लेते हैं,
तेरी याद मिटाने कहां जायें ।
तेरी याद मे रहे जो ये मनवा,
मन को बहलाने कहां जायें ॥
फुर्सत के क्षणों में उदासी ये,
जो साया बनकर रहती है ।
पागल सा हुआ जाए मेरा दिल,
ये हम पर हंसती रहती है ॥
ये रंग-बिरंगी तितलियां हमें,
आती-जाती जो लुभाती हैं
।
रह-रह के महकती खुश्बू जो,
मन को घायल कर जाती है ॥
ये शीत ऋतु सा जो मौसम,
तन मे सिहरन कर जाती है ।
है पास सुलगती सी आगें,
रह-रहके हमें ललचाती हैं ॥
तेरी यादों का दर्द भुला पाऊं,
हम बातें बस कर लेते हैं ।
दिल रोता रहता है अपना,
आखं बस हंसते रहते हैं ॥
दिल रोता रहता है अपना,
आखं बस हंसते रहते हैं.....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
10-03-2001,saturday,06:20pm,(472),
thoppur,dharmapuri,tamilnadu.
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