अब तो कृपा, कर दो गिरिधर ।
लाज बचा लो मेरी, हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो....
जैसे द्रोपदी की, लाज बचाई ।
जाके सभा मे, चीर बढ़ाई ॥
वैसे ही कृपा, करो हम पर ।
लाज बचा लो, मेरी हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो....
जैसे सुदामा को, तुम थे उबारे ।
बने थे उनके, तुम तो सहारे ॥
मेरे दुःख को, दूर करो नटवर ।
लाज बचा लो, मेरी हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो....
जैसे गज को, तुमने ग्राह से छुड़ाया ।
शबरी को अपना, निज धाम दिलाया ॥
ऐसी ही दृष्टि, करो रघुबर ।
लाज बचा लो मेरी हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो....
दुनिया की बात, कटारी सी लगती ।
जैसे दिल पे हो, आरी सी चलती ॥
अब तो मेरा आश, बस प्रभु तुम पर ।
लाज बचा लो, मेरी हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो गिरिधर ।
लाज बचा लो मेरी हे श्री धर ॥
अब तो कृपा कर दो....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
30-08-2013,friday,10:30Pm,
pune,maharashtra,
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