जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये,
कोई जाने नही-पहचाने नही ।
देखो क्या-क्या ये गुल खिलाये,
कोई जाने नही-पहचाने नही ॥
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये.....
कभी हंसती है ये जींदगी तो,
कभी रोती है पल भर मे देखो ।
कभी मिलते हैं सम्मान इसको,
कभी मिलते हैं अपमान देखो ॥
कब तक सफर यूं चलेगा...२
कोई जाने नही-पहचाने नही ॥
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये.....
मुश्किलों से ये लड़ना सिखाये,
मीठे-मीठे जहर ये पिलाये ।
मौत हो मांगती कोई आखें,
उनमे जीने की चाहत जगाये ॥
जींदगी एक पहेली है यारों,
कोई जाने नही-पहचाने नही ॥
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये.....
कभी आती बहारें खुशी की,
कब सफर हो खतम जींदगी का ।
बस सहारा है आशा ही इसका,
चलता रहता सफर जींदगी का ॥
कोई जाने नही-पहचाने नही ॥
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये.....
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये,
कोई जाने नही-पहचाने नही ।
देखो क्या-क्या ये गुल खिलाये,
कोई जाने नही-पहचाने नही ॥
जींदगी रूप क्या-क्या दिखाये.....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-08-2001,sunday,09:10am,(500),
At
vijayvada Rly.stn.
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