हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें,
मेरे अंग-अंग में, जैसे अगन लग रहा ।
ऊम्र है सोलवां,और चाहत बड़ी,
प्यार का मेरे दिल में, लगन लग रहा ॥
हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें....
मन है बेचैन सा,तन की सुध-बुध नहीं,
मेरा नस-नस तो, सितार सा बज रहा ।
आखें हैं ढूढ़ती,मैं न जानूं जिसे,
तुम बताओ सखी,ऐसा क्यों हो रहा ॥
हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें....
आशिकों की नजर, लगी है देखने,
बातें कुछ-कुछ तो, हम पर ही हो रहा ।
वे लगे हैं सखी हमपे, दिल फेंकनें,
रातों में लगता है, साथ कोई सो रहा ॥
हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें....
बावंरी सी हुई जा, रही हूं सखी,
मेरे दिल का धड़कन, बढ़ा जा रहा ।
बांसुरी श्याम की, अब है बजने लगी,
देखो राधा का मन तो, जला जा रहा ॥
हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें....
मैं पतंग सी तो उड़ने, लगी हूं सखी,
जानें कब डोर कट, जाये मेरा यहां ।
मैं गिरुंगी कहीं, कुछ पता है नहीं,
फूलों के बीच,या कांटे होंगे वहां ॥
हो रहा है सखी, आज-कल क्या हमें,
मेरे अंग-अंग में, जैसे अगन लग रहा ।
ऊम्र है सोलवां,और चाहत बड़ी,
प्यार का मेरे दिल में, लगन लग रहा
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-01-2002,thursday,midnight,01:05am,(510),
namakkal,,tamilnadu,
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