आसरा बस माँ, अब तुम्हारा,
कोई अपना नहीं, तो यहां है ।
जींदगी से हूं मैं ,अब तो हारा,
कोई अपना नही, तो यहां है ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा....
दूर-दूर भटके हम, माँ इस जहां में,
कोई अपना मिला, न यहां है ।
तेरे चरणों के माँ, बस दरश से,
मन तो सागर सा, मगन हुआ है ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा....
हम सुने थे माँ, तेरे ऐ चर्चे,
तु तो बिगड़ी है, सबकी बनाए ।
मेरी बिगड़ी को, भी तु बना दे,
तेरे द्वारे माँ, हम हैं आए ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा....
दीन-दुःखियों के, दुःख हरने वाली,
माँ हम कब से, पुकारे तुम्हें हैं ।
हे जगज्जननी, माँ शेरावाली,
माँ हम कब से, निहारे तुम्हें हैं ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा....
तु उन भक्तों की, है लाज रखती,
जो आश तुझपे, हमेशा करे हैं ।
तु खाली झोली सदा, उनकी भरती,
जो तेरे चरणों का, ध्यान धरे हैं ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा....
कर दो अपनी दया, अब मँ हम पर,
कोई दूजा सहारा नही है ।
अब तो हमपे माँ, इतना तरस कर,
कोई अब तो हमारा नही है ॥
आसरा बस माँ, अब तुम्हारा,
कोई अपना नहीं, तो यहां है ।
जींदगी से हूं मैं ,अब तो हारा,
कोई अपना नही, तो यहां है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
02-09-2002,10:15pm,monday,(515),
namakkal,tamilanadu.
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