आखिरी जाम ये होठों से, पिला दूं मैं तुम्हे ।
जींदगी भर के लिये,अपना तो बना लूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से.....
आ मेरे नूर-नजर,दिल में बसा लूं मैं तुम्हें ।
शरबती आखों में,काजल सा लगा लूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से.....
आज की शाम का, ये जाम है तुम्हारे लिये ।
दिल की धड़कन से तो, आवो मैं मिला दूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से.....
देखो ये रात ने सुरज को,छिपाया है कहां ।
आओ अब हुश्न के साये मे, बसा लूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से.....
अब तो आया है नशे को, भी नशा यूं समझो ।
आओ अपने भी नशे में,जरा मिला लूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से.....
खुदा करे कि ये रात,यूं ही ऐसी रहे ।
अपने हुश्न का आशिक, तो बना लूं मैं तुम्हें ॥
आखिरी जाम ये होठों से, पिला दूं मैं तुम्हे ।
जींदगी भर के लिये,अपना तो बना लूं मैं तुम्हें ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
08-12-2000,12:10pm,(422),
chandrapur,maharashtra
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