पत्थर दिल भी कलेजा कांप उठता,
और आखों मे आंसू आ जाता ।
जब किसी बाप की बेटी का,
जबरन बलात्कार है किया जाता ॥
मां की श्वासें हैं थम जाती,
और पिता बेबस है नजर आता ।
जब किसी बाप की बेटी का,
जबरन बलात्कार है किया जाता ॥
ये धरा है व्याकुल हो जाती,
और आकाश जोर से रो उठता ।
जब किसी बाप की बच्ची का,
जबरन बलात्कार है किया जाता ॥
पर लाचार से दिखते आज हैं सब,
और हादशे पे हादशे हो जाते ।
मुज़रिमो को हो फांसी की सजा,
कुछ दिनों तक हम हैं चिल्लाते ॥
पर कानून बनाने वालों से ,
कठोर कानून नही है बनाये जाते ।
मुज़रिमों को मृत्य का भय ही नही,
इस लिये अपराध ये करते जाते ॥
ऐसे पापीयों की केवल एक सजा,
और वो सिर्फ फासी ही हो ।
जिसे देख के औरों मे हो डर,
और उन्हें किसी तरह की माफ़ी न हो ॥
पत्थर दिल भी कलेजा काप उठता....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२०-४-२०१३,शनिवार,११.३० बजे प्रातः
पुणे,महा.
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