सखी मुरली वाले की है, चाह कैसी ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की.....
मै तो चाहूं बन जाऊं, मुरलिया....२
अधरों पे रखेंगे अपने, संवरिया.....२
मै तो श्याम की बनुंगी, हार जैसी ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की.....
मै तो चाहूं बन जाऊं, मोर पंखी....२
सावरे के मुकुट मे, रहुंगी रखी.....२
मैं तो कानों मे कुण्डल,रहुंगी ऐसी ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की.....
मैं तो बन जाऊं, कमर करधनियां.....२
बन जाऊं मैं मोहन की, पांव पयजनिया.....२
मै तो मोहन की रहुंगी, पिताम्बर जैसी ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की.....
मै तो बनूंगी, श्याम का दर्पण......२
कर दुंगी अपना, सब कुछ अर्पण.....२
निहारा करेंगे श्याम, मोहे प्यार जैसे ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की है, चाह कैसी ।
मै तो सांवरे की बनुंगी, श्रृंगार जैसी ॥
सखी मुरली वाले की.....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
27-08-2013,tuesday,10am(739),
pune,maharashtra.
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